
केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, जो कि कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार का एक स्वायत्त संगठन है, का एक घटक है । संस्थान की स्थापना रेगिस्तान वनीकरण अनुसंधान स्टेशन से हुई है, जिसकी स्थापना 1952 में रेत के टीलों के स्थिरीकरण और आश्रय बेल्ट की स्थापना के माध्यम से हवा के कटाव के खतरों को नियंत्रित करने के लिए अनुसंधान कार्य करने के लिए की गई थी। रेगिस्तान वनीकरण अनुसंधान स्टेशन को 1957 में रेगिस्तान वनीकरण और मृदा संरक्षण स्टेशन के रूप में पुनर्गठित किया गया था, जिसका नाम बदलकर 1959 में केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) कर दिया गया। संस्थान को 1966 में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन लाया गया। काजरी देश का एकमात्र ऐसा संस्थान है जिसे विशेष रूप से शुष्क क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित विषयों पर अनुसंधान करने का अधिदेश है। संस्थान के अथिदेश में टिकाऊ कृषि प्रणालियों पर बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान करना, प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति और मरुस्थलीकरण प्रक्रियाओं पर सूचना कोष के रूप में कार्य करना, पशुधन आधारित कृषि प्रणालियों और रेंज प्रबंधन प्रथाओं का विकास करना, स्थान-विशिष्ट प्रौद्योगिकियों का निर्माण और हस्तांतरण करना शामिल है। जोधपुर के अलावा, संस्थान के अनुसंधान कार्यक्रम राजस्थान के बीकानेर, पाली और जैसलमेर, गुजरात के भुज और जम्मू-कश्मीर के लेह में स्थित पाँच क्षेत्रीय अनुसंधान स्टेशनों पर भी चलाए जाते हैं। इसके अलावा, संस्थान के पास अग्रिम पंक्ति प्रौद्योगिकी प्रदर्शनों के लिए तीन कृषि विज्ञान केंद्र (फार्म विज्ञान केंद्र) हैं। संस्थान अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय संस्थानों के साथ निकट संपर्क में एवं शुष्क कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिए काम करने वाले अन्य हितधारकों के साथ भी काम करता है। संस्थान भारत के शुष्क क्षेत्रों के निवासियों के लिए टिकाऊ भूमि उपयोग और विविध आजीविका विकल्पों के लिए एकीकृत तरीके से कृषि और संबद्ध विषयों के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को आगे बढ़ाता है। भविष्य में हमारा ध्यान अधिक जलवायु-लचीली कृषि विकसित करने, उपयुक्त प्रौद्योगिकियों के विकास और वितरण के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने और पर्यावरणीय रूप से नाजुक शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में भूमि क्षरण को नियंत्रित करने पर होगा। पिछले छह दशकों में संस्थान के अभिनव दृष्टिकोण और निरंतर प्रयासों ने देश के गर्म शुष्क क्षेत्रों (~32 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र) में ग्रामीण आजीविका में बहुत सुधार किया है। अब हम ठंडे शुष्क क्षेत्रों (~7 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र) की ओर बढ़ रहे हैं।
डॉ. सुमंत व्यास